भारत के इतिहास में मौजूद अजूबों के बारे में जानते हैं कि वह किसने कब और किसके लिए बनवाए थे हिंदी जगत के इतिहास में आज हम जिन इमारत को अजूबों के नाम से जानते हैं उनके नाम कुछ इस प्रकार हैं
1. ताजमहल
2. स्वर्ण मंदिर
3. कोणार्क सूर्य मंदिर
4. अंकोरवाट मंदिर
यह दुनिया में मौजूद सात अजूबे हैं
वैसे कहा जाता है कि दुनिया के इतिहास में आठ अजूबे हैं परंतु आठवां अजूबा अधिक पुराना ना होने के कारण जो की 2023 में बना है उसे अभी इतिहास में प्रचलित नहीं कर सकते परंतु उसका नाम कुछ इस प्रकार है
अंकोरवाट मंदिर
अंकोरवाट मंदिर कंबोडिया में स्थित एंकर में एक भव्य मंदिर परिषद के रूप में स्थित है और यह दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक बना है यह पूरे रूप से भगवान विष्णु को समर्पित एक हिंदू मंदिर के रूप में बनाया गया था लेकिन इसके बाद में यह बौद्ध धर्म में परिवर्तित कर दिया गया यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों में से एक है और कंबोडिया के राष्ट्रीय ध्वज में भी इस जगह दी गई है 12वीं शताब्दी में खमीर सम्राट सूर्य वर्मन द्वितीय द्वारा भगवान विष्णु के राज्य के रूप में निर्मित है इसकी भव्यता निर्माण की अद्भुत तकनीक हिंदू से बौद्ध धर्म में रूपांतरण और खमीर साम्राज्य के सौंदर्य और आध्यात्मिकता के प्रति के रूप में इसका महत्व है यह दुनिया की सबसे बड़ी धार्मिक संरचना में से है जो लगभग 400 एकड़ में फैली हुई है इसका निर्माण इस तरह से किया गया कि इसके पास एक बड़ी खाई है जो दूर से देखने पर एक झील की तरह दिखाई देती है मंदिर को हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार मेरु पर्वत ब्रह्मांड का केंद्र का प्रतीक भी माना जाता है मंदिर की दीवारों पर रामायण और महाभारत के प्रसंग का चित्रण भी है जिसमें समुद्र मंथन का दृश्य और अप्सराव के नृत्य चित्र शामिल है खमीर कल के प्रभाव को गुप्त काल से जोड़कर देखा जाता है मंदिर के निर्माण मेंबलुआ पत्थर का उपयोग किया गया है कुछ किवंदंतिया यह भी कहती हैं यह भी कहती है की इंद्र ने इसे एक ही रात में अपनी अलौकिक शक्तियों से बनाया था यह मंदिर आज कंबोडिया का राष्ट्रीय प्रतीक बन चुका है अंकोरवाट मंदिर अपनी स्थापत्य कला धार्मिक प्रतीकात्मक और प्राचीन इतिहास के साथ खमीर साम्राज्य की महानता और भारतीय संस्कृति के प्रभाव का अद्भुत उदाहरण है
अब हम दुनिया के इतिहास के सातों अजूबों के बारे में बात करते हैं यह हमने आठवें अजूबे के बारे में बताया था अब हम विस्तार से बात करते हैं
ताजमहल
ताजमहल हमारे भारत देश के उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में स्थित यह दुनिया भर में सफेद संगमरमर के सबसे प्रसिद्ध मकबरों में से एक माना जाता है जिसे देखने के लिए हर साल दुनिया भर के लाखों पर्यटक आते हैं और इसकी कारीगरी का लुफ्त उठाते हैं मुगल बादशाह शाहजहां द्वारा अपनी प्रिय पत्नी मुमताज महल की याद में बनवाए गए प्रेम के इस सर्वाधिक प्रसिद्ध प्रतीक को देखना कौन नहीं पसंद करेगा यह आगरा में यमुना नदी के दक्षिणी तट पर एक हाथी दांत सफेद संगमरमर का मकबरा है इसे 1632 में मुगल सम्राट ने (1628 से 1658 तक शासन किया उसे शाहजहां) के द्वारा अपनी पसंदीदा पत्नी मुमताज महल की मकबरे के लिए बनवाया था यमुना नदी का पानी ताजमहल की नई में मौजूद लकड़ी को नमी प्रदान करता है जिससे उसकी नींव मजबूत बनी रहती है यमुना नदी भारत की एक महत्वपूर्ण नदी है और गंगा की सहायक नदी भी है यह अद्भुत संरचना प्रेम का वह स्मारक जो मुगल बादशाह शाहजहां ने दुनिया को दिया अपनी बेगम मुमताज महल के प्रति उनके आघात प्रेम का प्रमाण है यह संगमरमर में मनाया जाने वाला एक बहुमूल्य तथा धर्म कीमती पत्थरों से महिमा मंडित किया गया रोमांस है और यही इसकी सरहाना करने का तरीका है ताजमहल के तथाकथि 22 कमरों का रहस्य कोई रहस्य नहीं है बल्कि यह कमरा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षणे (एएसआई) के अनुसार मकबरे के तहखाना में संरचनात्मक हिस्से है जो विशाल वेंटिलेशन के लिए बने हैं और जिनमें कई लंबे गलियारे और छोटे कमरे भी शामिल है इन कमरों को बंद रखने के पीछे सुरक्षा कर्म के साथ मुख्यतः संगमरमर की दीवारों का कार्बन डाइऑक्साइड के संपर्क से बचने का कारण भी बताया गया है क्योंकि इससे वह खराब हो सकती है ताजमहल को रौजा- ए -मुनव्वरा के नाम से भी और तेजो महालय नाम से भी जाना जाता है ताजमहल का निर्माण करने में लगभग 20 साल का समय लगा इसे बनाने में लगभग 20000 मजदूर और कारीगरों ने काम किया था और सामग्रियों को पहुंचाने के लिए 1000 लगभग हाथियों का इस्तेमाल किया गया था इसकी दीवारों पर लाजवर्द, सीप, सुलेमानी पत्थर, और पन्ना जैसे बेस कीमती जवाहरातो से की गई सजावट जिसे पीटा् डयूरा कहा जाता है चारों मिनार भूकंप से बचाव के लिए बाहर की ओर झुकी हुई बनाई गई ताकि अगर गिरे तो मुख्य इमारत पर ना गिरे इसमें लगे रतन भारत के साथ-साथ चीन तिब्बत श्रीलंका और अब जैसे देशों में से ले गए थे
ताजमहल लगभग 42 एकड़ यानी 17 हेक्टेयर के विशाल परिसर में बना हुआ है यह परिसर मकबरे एक मस्जिद और एक गेस्ट हाउस के समेटे हुए हैं और यह चारों ओर से एक दीवार से गिरा हुआ है
स्वर्ण मंदिर
स्वर्ण मंदिर का निर्माण भारत में सिख धर्म के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है इस गुरुद्वारे की नींव 1581 में रखी गई थी और इसका निर्माण 1588 में पूरा किया गया 1604 में सिखों के पांचवे गुरु गुरु अर्जन देव ने गुरुद्वारे के अंदर सिख धर्म के प्रमुख धर्म ग्रंथ आदि ग्रंथ की एक प्रति स्थापित की थी स्वर्ण मंदिर जिसे श्री हर मंदिर साहिब के नाम से भी जाना जाता है भारत के सबसे आध्यात्मिक स्थलों में से एक है एक सरोवर के चारों ओर निर्मित इसका निर्माण गुरु रामदास ने 1577 में पूरा करवाया था महाराजा रणजीत सिंह ने 1830 में इसका पुनर्निर्माण पूरी तरह से संगमरमर और सोने से करवाया था यह अमृतसर नामक एक पवित्र सरोवर के बीच में है महाराज रणजीत सिंह ने मंदिर के आगरा भर को सोने की पत्तियों से मड़वाया जिसके कारण इसे स्वर्ण मंदिर कहा जाता है 1577 में सूफी संत हजरत मियां मिलने गुरु अर्जन देव जी को कहने पर मंदिर की नींव रखी थी मंदिर में चार दरवाजे बनाए गए जो सभी धर्म के लोगों का स्वागत करते हैं और सिख धर्म के सामान्य के सिद्धांतों को दर्शाते हैं अफ़गानों के हमले में मंदिर को कई बार तोड़ा गया था 19वीं शताब्दी में महाराजा रणजीत सिंह ने मंदिर के पुनर्निर्माण का कार्य करवाया और इसकी दीवारों पर सोने की परत चढ़ाई थी यह सिख धर्म का सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है और यहां हर रोज लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं यह मंदिर गुरु द्वारा प्रबंध समिति के नियंत्रण में आता है जो सिख धर्म के धार्मिक और सामाजिक कार्यों का केंद्र है स्वर्ण मंदिर लगभग 15000 किलो शुद्ध सोने का इस्तेमाल किया गया हैस्वर्ण मंदिर के निर्माण में लगभग 300 करोड़ से ज्यादा राशि लगी थी विश्व में किसी भी मंदिर के निर्माण में इतना सोना नहीं लगा जितना इस लक्ष्मी नारायण मंदिर में लगाया गया था
कोणार्क सूर्य मंदिर
बंगाल की खाड़ी के तट पर सूर्य की किरण से सरोवर कोणार्क का सूर्य मंदिर सूर्य देवता के रथ का समरिया प्रतिनिधि है इसके 24 मिल के पत्थर से बने स्थान है इसमें 6 घोड़े का समूह है 13वीं शताब्दी में निर्मित यह भारत का सबसे प्रसिद्ध ब्रह्म पूजा स्थलों में से एक है यह उड़ीसा के पुरी जिले के समुद्र तट पर पूरी शहर से लगभग 35 किलोमीटर यानी 22 मिल उत्तर पूर्व में कोणार्क में एक 13वीं शताब्दी का हिंदू सूर्य मंदिर है इस मंदिर का निर्माण लगभग 1250 ईस्वी में पूर्व गंगा राजवंश के राजा नरसिंह देव प्रथम का माना जाता है यह हिंदू उड़ीसा वास्तु कला का शिकार भी है सूर्य मंदिरों का इतिहास सूर्य देव की पूजा और सूर्य की शक्ति में विश्वास से जुड़ा है भगवान कृष्ण के पुत्र सामने कुष्ठ रोग से मुक्ति के बाद पहली बार सूर्य की आराधना की थी और फिर उन्होंने 12 सूर्य मंदिरों का निर्माण कराया था इसे सूर्य देव के रथ के आकार में बनाया गया है जिसमें सात घोड़े और 12 पहिए लगे हैं जो सप्ताह के 7 दिन 24 घंटे और वर्ष के 12 महीना का प्रतीक है यह औरंगाबाद जिले के देव नामक स्थान पर स्थित है यह छठ पर्व के दौरान यहां भक्तों की भारी भीड़ उमर आती है और माना जाता है कि यहां कोई भी भक्त खाली हाथ नहीं जाता है सूर्य मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी 1236 से 1264 ई तक चला सूर्य मंदिर में पूजा नहीं होती है क्योंकि मंदिर के गर्भ ग्रह में सूर्य देवता की जो मूल मूर्ति थी वह समय के साथ नष्ट हो गई या गायब हो गई हिंदू धर्म शास्त्र के अनुसार खंडित मूर्तियों की पूजा नहीं की जाती है इसलिए पूजा बंद कर दी गई थी यह मंदिर करीब 9 लाख 49000 131 वर्ष पुराना माना जाता है सूर्य मंदिर लगभग 26 एकड़ की भूमि में फैला हुआ है इस मंदिर में फूल बेल और ज्यामितीय नैनो की सुंदर नक्काशी की गई है साथ ही मानव देवगन धर्म और किन्नर आदि के चित्र भी प्रदर्शित किए गए हैं