भारत की भौगोलिक संरचना

भारत दक्षिण एशिया के तीन प्रयोग में से मध्यवर्ती प्रायद्वीप पर स्थित है यह देश अपने 32 87 26 3 वर्ग किमी क्षेत्रफल के साथ आज विश्व का सातवां सबसे बड़ा देश बन चुका है साथ ही लगभग 1.4 अरब आज भारत देश की जनसंख्या है भारत की भौगोलिक संरचना एक विशाल और विविधता पूर्ण संरचना है जिसमें उत्तर में विस्तृत हिमालय पर्वतमाला मध्य में विशाल सिंधु गंगा के मैदान क्षेत्र और पश्चिम में थार रेगिस्तान तथा दक्षिण में प्रायद्वीपीय पठार शामिल है यह प्रायद्वीपीय क्षेत्र पूर्व में बंगाल की खाड़ी में पश्चिम में अरब सागर में और दक्षिण में हिंद महासागर से घिरा हुआ है भारत की जलवायु मुख्य रूप से उष्ण कटिबंधीय मानसूनी है जिसका प्रभाव तापमान वर्षा और पवनों की दिशा पर पड़ता है जो इसे कई प्राकृतिक और भौगोलिक विशेषताओं से युक्त बनता है भारत की उत्तरी सीमा पर हिमालय पर्वतमाला स्थित है जो भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया से अलग करती है और सीत पवन को रोकते हैं भारत की कुल तट रेखा की लंबाई 7516.6 किलोमीटर तक है भारत देश की उत्तरी सीमा पर हिमालय पर्वत है जो भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया से अलग करती है हिमालय के दक्षिण में सिंधु गंगा के विशाल मैदान है जो उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी से बने हुए हैं और कृषि के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण है भारत के पश्चिम में थार रेगिस्तान स्थित है जो भारत के शुष्क क्षेत्र में से एक है भारत का एक बहुत बड़ा भाग जो हिंद महासागर से घिरा हुआ है यह एक पठारी संरचना है भारत को एक बहुत बड़े भाग में उष्णकटिबंधीय मानसूनी के रूप में वर्गीकृत किया जाता है दक्षिण से आने वाली मानसूनी हवाएं भारत की जलवायु पर बहुत अधिक प्रभाव डालती है जिससे भारत देश में वर्षा होती है कर्क रेखा भारत को लगभग दो बराबर भाग में विभाजित करती है दक्षिण भाग में उसने कटिबंधीय और उत्तरी भाग में शीतो कटिबंध है भारत की कुछ नदियां जैसे गंगा ब्रह्मपुत्र महानदी गोदावरी और आदि यह सब बंगाल की खाड़ी में गिरती है तथा सिंधु और नर्मदा अरब सागर में गिरती है अंडमान निकोबार महाद्वीप समूह और लक्षद्वीप भारत के महत्वपूर्ण देव को में से एक है हिमालय पर्वत माला विशाल मैदानी क्षेत्र मरुस्थलों प्रायद्वीपीय पठार और तटीय क्षेत्र में शामिल है और फैला हुआ है जो 8 डिग्री 4 उत्तर से 37 डिग्री 6 उत्तर आकांक्षा और 6 8 डिग्री 7 पूर्व से 97 डिग्री 25 पूर्वी देशांतर के बीच स्थित है इसकी भौगोलिक विशेषताओं में विभिन्न जलवायु मिट्टी वनस्पति और प्राकृतिक संसाधन शामिल है जो इस विशिष्ट पहचान देते हैं भौगोलिक संरचना हमें किसी क्षेत्र की प्राकृतिक भू आकृतिक जैसे पत्थर मैदान घटिया नदियां झील आदि का अध्ययन करती हैं यह पृथ्वी की सात के रूप में उनकी भू वैज्ञानिक और भौतिक विशेषताओं और उसे क्षेत्र के पर्यावरण को समझने से संबंधित है

प्राकृतिक संरचना
भूमि को मुख्य चार भागों में बांटा गया है
1. विस्तृत पर्वतीय प्रदेश
2. सिंधु और गंगा के मैदान
3. रेगिस्तान क्षेत्र
4. दक्षिणी प्रदीप
हिमालय पर्वत की तीन श्रृंखलाएं हैं जो कि लगभग एक समान फैली हुई है इनके बीच बड़े-बड़े पर्वत और घटिया है इनमें से कुल्लू कश्मीर जैसी कुछ घटिया उपजाऊ विस्तृत और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है दुनिया की सबसे बड़ी व ऊंची चोटियों में से कुछ इन्हीं पर्वत श्रृंखला में से है ज्यादा ऊंचाई के कारण आना जाना केवल कुछ ही दर्दों से हो पता था जिन में मुख्य है चुंबी घाटी से होते हुए भारत तिब्बत व्यापार मार्ग पर जेलप-ला और नाथू-ला दृरे उत्तर पूर्व दार्जिलिंग व किन्नर के उत्तर पूर्व में सतलुज घाटी में शिपकि – ला दर्रा पर्वतीय दीवार लगभग 2400 की दूरी तक फैली हुई है जोकि 240 कमी से 320 किमी तक चौड़ी है पूरा में भारत तक म्यांमार और भारत एवं बांग्लादेश के बीच में पहाड़ी श्रृंखला की ऊंचाई बहुत कम है लगभग पूर्व से पश्चिम तक फैली हुई गारो खासी जातीय और नगा पहाड़ियों उत्तर से दक्षिण तक फैली में जो तथा राखाएं पहाड़ियों की श्रृंखला से जा मिलती है
सिंधु और गंगा नदी के मैदान लगभग दो चार सुनने सुनने की मी लंबे और 240 से 320 किमी तक छोड़े हैं यह तीन अलग नदी प्रणालियों सिंधु गंगा और ब्रह्मपुत्र के था लों से बने हैं यह संसार के सबसे बड़े सपाट कचरी लंबे और पर्वत पर बने सर्वाधिक घने क्षेत्र में से एक है दिल्ली में यमुना नदी और बंगाल की खाड़ी के बीच लगभग 1600 किमी की दूरी में केवल 200 मीटर की ढलान है
जो रेगिस्तानी क्षेत्र है उन्हें दो भागों में बांटा जा सकता है बड़ा विशाल रेगिस्तान और छोटा लघु रेगिस्तान विशाल रेगिस्तान कच्छ के रन के पास से उत्तर की ओर लूनी नदी तक फैला है राजस्थान सिंधु की पूरी सीमा रेखा इसी रेगिस्तान में है लघु रेगिस्तान जैसलमेर और जोधपुर के बीच लूनी नदी से शुरू होकर उत्तर पश्चिम बंजर भूमि तक फैला हुआ है इन दोनों भूमियों रेगिस्तानों के बीच बंजर भूमि का क्षेत्र है जिसमें पथरीली भूमि है यहां कहीं स्थान पर चूने के भंडार हैं
दक्षिणी प्रदीप का जो पत्थर है वह 460 से 1 2 2 0 मीटर तक के उच्च पर्वत तथा पहाड़ियों की श्रृंखलाओं द्वारा सिंधु और गंगा के मैदाने से पृथक हो जाता है इसमें प्रमुख है अरावली विंध्य सतपुड़ा मेंकाल और अजंता प्रदीप के एक तरफ पूर्वी घाट है जहां औसत ऊंचाई 610 मीटर के करीब है और दूसरी तरफ पश्चिमी घाट यह ऊंचाई साधारणतः 915 से 1220 मीटर है कहीं यह 24 40 मीटर से अधिक है पत्थर का यह दक्षिणी भाग नीलगिरी की पहाड़ियों से बना है जहां पूर्वी और पश्चिमी घाट निकलते हैं उसके पास फैली पहाड़ियां पश्चिमी घाट का विस्तार मानी जाती है

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