तप प्रकाश और ध्वनि

तप प्रकाश और ध्वनि तीनों ही हमारे जीवन यात्रा के अभिभाज्य अंग है जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं विज्ञान ने हमें यह समझाया है कि यह कैसे उत्पन्न होते हैं कैसे व्यवहार करते हैं किन माध्यमों से संचालित होते हैं और इन का उपयोग कहां-कहां संभव है हम जीवित रहते हैं l प्रकाश से हम देखते और प्रेरित होते हैं ध्वनि से हम सुनते हैं बोलते हैं संगीत को सुनते हैं परंतु इनका उपयोग जितना आवश्यक है उतना ही दायित्व भी बनता है की हम हम आएंगे दुष्प्रभावों से सावधान रहे तप के अधिक उपयोग से पर्यावरण प्रभावित हो रहा है प्रकाश एवं ध्वनि प्रदूषण हमारी प्रकृति को स्वास्थ्य को प्रकाश एवं ध्वनि प्रभावित कर रहे हैं यदि हम संतुलित दृष्टिकोण अपनाएं शिक्षित व्यवहार करें वैज्ञानिक ज्ञान का उपयोग करें तो हम तप प्रकाश एवं धमनी इन तीनों को नए केवल जीवन को सुगम और समृद्ध बनाने में प्रयोग कर सकते हैं बल्कि प्राकृतिक और पर्यावरण की भी रक्षा कर सकते हैं यह तीनों ऊर्जा का एक अलग-अलग रूप है जिनके अध्ययन से हमें प्रकृति की गुत्थियों को समझने में मदद मिलती है विज्ञान में यह अवधारणाएं बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इनके द्वारा हम विभिन्न प्रक्रियाओं को समझ पाते हैं तो आप उसे वस्तु को कहते हैं जब दो तीन गति से चलने वाले अनु आपस में टकराते हैं या आंदोलन करते हैं तब उसे वस्तु का ताप बढ़ता है उसे ताप कहते हैं अत्यधिक ताप से जलीय जीवों में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है मनुष्य को हिट स्ट्राक निर्जलीकरण आदि समस्याएं हो सकती हैं ठंडा ताप से हाइपोथर्मिया आदि भी हो सकते हैं ताप से हमें जीतने पर लाभ है उतने ही नुकसान भी हैं ताप के कारण पिघलना वाष्पीकरण होना संघटन परिवर्तन आदि होता है धातुओं का विस्तार निर्माण सामग्री का व्यवहार बदलने आदि भी ताप के प्रभाव में आता है ताप के नियंत्रण के लिए खाना पकाना औद्योगिक प्रक्रिया बिजली उत्पादन हीटिंग और कूलिंग सिस्टम ताप उपचार आदि में तो ताप उपयोग बहुत व्यापक है और साथ ही इंसुलेशन थर्मोस्टेट उपयुक्त डिजाइन छाया पानी या अन्य तरल माध्यम से ताप विनिमय प्रतिक्रिया संसाधन जैसे पेड़ पौधे आदि का संरक्षण ताप नियंत्रण में सहायक होता हैप्रकाश प्रकाश विद्युत चुंबकीय विवरण का एक वह भाग होता है जिसके द्वारा मनुष्य देख सकते हैं इसका तरंग स्वरूप और कान स्वरूप दोनों माना जाता है प्रकाश का हमारे जीवन काल पर बहुत ही महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है प्रकाश अपने आप में ही एक ऊर्जा है और इसका प्रवाह एकदम तेज लगभग 3 गुना 10 की पावर 8 मीटर प्रति सेकंड यानी लगभग 300 000 00 किमी प्रति सेकंड की गति से होता है प्रकाश को चलने के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है वह स्वयं निर्वात में भी चलता है प्रकाश सीधी लहर की दिशा में ही चलता है जब तक की कोई माध्यम या प्रतिरोध उसे ना मिले तब तक प्रकाश चलता ही रहता है जैसे दर्पण में प्रकाश का परावर्तन नियम आपतन कोण – परावृतन कोण है जब प्रकाश एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करता है तब उसका मार्ग व्रत या कोण बदलता है और जब प्रकाश तुझ कानों द्वारा विभाजित या विपरीत होता है जैसे आकाश का नीला दिखाना सूर्यास्त सूर्योदय का लाल होना तब प्रकाश प्रकी्णृन होता है वर्ण विक्षेपण तब होता है जब श्वेत प्रकाश के घटक रंग अलग-अलग दिशाओं में बिखरते हैं जैसे प्रिज्म में होता है कुछ मामलों में प्रकाश की तरंगों के दोलन की दिशा सीमित होती है जैसे ध्रुवीकरण धूप का चश्मा उसे हम ध्रुवण कहते हैं यदि हम समझे तो प्रकाश को हम कहीं प्रकार से प्रदर्शित कर सकते हैं जैसे दृश्य प्रकाश वह प्रकाश जिसे आंख देख सकती है लाल नारंगी से लेकर वायलेट नीले रंगों तक अवरक्त विकिरण जिसे हमारी आंखें नहीं देख सकती पर जिसे उसका के रूप में महसूस किया जा सकता है परा बैंगनी विकिरण यह वे विद्युत चुंबकीय विक्रम के भाग हैं लेकिन मानव दृष्टि सीमाओं पार कर जाते हैं प्रकाश का स्रोत जैसे सूर्य बल्ब लेजर अधिक होता है प्रकाश किसी माध्यम के अपवर्तनांक के अनुसार प्रकाश की गति में दिशा बदलती रहती है प्रकाश में प्रतिबिंब परावर्तन अपवर्तन आदि घटनाएं वीधियो द्वारा प्रकाश अपने रास्ते में बाधाएं प्रकार अपने गुना को प्रदर्शित करता है प्रकाश जीवों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है जीवो के लिए दृष्टि की व्यवस्था पफ़लनज़े मैं प्रकाश संश्लेषण दिन रात का चक्र आदि होता है प्रकाश के तकनीकी उपयोग होते हैं जैसे प्रकाश बल्ब लेजर चिकित्सा दूरदर्शन कैमरा संचार में प्रकाश आधारित केवल फाइबर ऑप्टिक यह सब प्रकाशीय तकनीकी उपयोग होते हैंध्वनि
जब कोई वस्तु कंपित होती है तो वह अपने आसपास के माध्यम के काणे को आगे पीछे धकेलती है यह दबाव की दोलन माध्यम के अन्य काणे तक पहुंचती है जिसे ध्वनी उत्पन्न होती है ध्वनि यांत्रिकी तरंगों का रूप है जो किसी माध्यम ठोस द्रव्य गैस के माध्यम से अक्ष के अनुरूप कंपन के द्वारा फैलती है ध्वनि के प्रमुख गुण तरंग धैर्य तीव्रता स्वर स्वरूप आदि हैं आवर्ती प्रति सेकंड कितनी दोलन होती है कि उसे मापने के लिए हेरिटेज का उपयोग करते हैं दो-दो दोनों के बीच तरंग धैर्य का संगम बनता है तब ध्वनी उत्पन्न होती है ध्वनि निर्वात में नहीं फैलती है उसे फैलने के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है जिससे वह सरलता से फैल सकती है ध्वनि की चाल अलग-अलग माध्यमों में अलग होती है वायु में अलग 340 मिनट प्रति सेकंड के आसपास होती है जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है वायु आदि माध्यम में ध्वनि की गति थोड़ी और बढ़ जाती है और जैसे प्रकाश का प्रभाव परिवर्तन वैसे ही ध्वनि किसी ठोस सतह से टकराकर वापस आ जाती है जैसे गुफाएं बड़ी दीवारें आदि इस परावर्तित ध्वनि को प्रतिध्वनि कहते हैं जब कोई वस्तु अचानक टकराती है तब उसे समय ध्वनि उत्पन्न होती है किसी वाद्य यंत्र में भी प्राकृतिक स्वर और उच्च स्वर होते हैं पशु पक्षी की आवाज प्राकृतिक घटनाएं जैसे बिड़की बारिश तूफान आदि में भी प्राकृतिक स्रोत होता है मानव की बोलचाल और जानवरों की बोलचाल में ध्वनि का संचार होता है स्वर धुन ताल यंत्र आदि में भी ध्वनि का विस्तार होता है और अल्ट्रासाऊंड थेरेपी सोनोग्राफी आदि में पराश्रव्य ध्वनि का उपयोग होता है तीर धनी हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है इससे हमारे स्वर्ण शक्ति कम होती है तनाव आता है नींद में कमियां आती है ध्वनि मानव श्रवण सीमा में होती है कुछ ध्वनियां अविश्रव्य या पराश्रव्य हो सकती है जो सुनने में नहीं आती है

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